कुछ लम्हों को पिरोके एक कविता शुरू की थी
कभी-कभी कलम खराब हुई और वक़्त की स्याही ने कुछ निशान छोड़
दिए
पिछले कुछ दिनों सन्नाटा ऐसा बरसा,
पंक्तियाँ कविता की सारी मिट गयी
और निशान स्याही के फ़ैल गए कुछ ज्यादा ही...
अधूरी कवितायेँ मैं याद नहीं रखता
और आदत भी बुरी, सम्हाल के नहीं रखता
अफ़सोस है कविता के खो जाने का
अब लम्हों को फिरसे पिरोने की फुर्सत नहीं...