Thursday 13 August 2015

ऑफिसों में देशप्रेम...

गुब्बारे रंग-बिरंगे सजे हैं ऑफिसों में
टैटू तिरंगे दमकते हैं सेल्फ़ी में

दो दिन बचे हैं देशप्रेम दिखा लो
15 अगस्त आराम का दिन है...

Friday 7 August 2015

जिंदगी से प्यार कर...

क्यों खोज रहा है प्यार हर गली-सहर में
बेहतर है जिंदगी से प्यार कर

ये वापसी में खूब सारा प्यार देती है...

मुझे आँखें पढ़ने दो...

इस मुखौटे को उतारो जरा
मुझे आँखें पढ़ने दो

सुना है रास्ता दिल का आँखों से गुजरता है...

Sunday 2 August 2015

दोस्ती की रबर बॉल...

दोस्ती की रबर बॉल गिरती-फिसलती हाथों से,
टप्पा खाती शहर-शहर

यकीन है मुझको, पकड़ ही लूँगा फिर से किसी टप्पे के बाद...


Saturday 1 August 2015

timeless wait...


I am still waiting for you in those time frames
no one can see me, 
but I see the whole world still 

I believe in 5 dimensions theory of Physics
Do you believe me ?

P.S. I love you...

उसे अब चाँद की तमन्ना नहीं...

उसे अब चाँद की तमन्ना नहीं
वो इन बातों से ऊपर उठ बन गया है तारा

वो चमका रहा है कुछ आँखें अँधेरे में
मरेगा जब रोशन करेगा उम्मीदें कुछ बुझती हुई...

चाँद जैसा था वो ...

चाँद जैसा था वो
कुछ रंग उसके हमेशा ही अँधेरे में रहे

पूनम की रात कभी आई ही नहीं उसे जानने को...

पानी पे लिखा एक वादा...

पानी पे लिखा एक वादा
गर्मियों में उड़ गया
बरसात संग बरसा फिरसे
पर पानी में गुम गया

पारा कभी जमा नहीं
और समुन्दर में ये घुल गया
खारा था शायद वादा
बस खारेपन को मिल गया...

कुछ ज्यादा ही मीठी हैं यादें...

कुछ ज्यादा ही मीठी हैं यादें
हर बार आँखें नमकीन कर देती हैं...

वो देखता रहा उसको कुछ ऐसे...

वो देखता रहा उसको कुछ ऐसे
याद हो कोई भूली-बिसरी जैसे...

बहरों से भरे समाज में...

बहरों से भरे समाज में
खामोशियों ने भी चिल्लाना सीख लिया है

देखो, शायद कोई बात बन जाए...

आम आदमी की कीमत...

लाइफ इन्स्योर्ड करवाके
टेंशन हज़ारों संग लेकर चलता है

आम आदमी की कीमत सबको पता है...

पँख सबके पास हैं...

पँख सबके पास हैं, दबे हुए हैं शरीर के खोल में
उड़ने का शौक हो, तो प्यार करके देख लो...

पहाड़ रो रहे हैं...

गाड़ियों का शोर और धुआँ बढ़ता ही जा रहा है
बर्फ कुछ कम दिख रही है पहाड़ों पे

पहाड़ रो रहे हैं...

आओ आँखें पढ़ें...

बातों का काम लोगों का है
आओ आँखें पढ़ें एक-दूसरे की, हम दोनों...

कोकून से क्या निकला...

कोकून से क्या निकला
सारे दर्द भूल गया

मैं अब शब्दों की रेशम बुनता हूँ...

वो टूट के गिरा...

वो टूट के गिरा और बिखर गया
काफी कोशिशों के बाद फिरसे जुड़ पाया है
कुछ अलग सा दिखता है अब
कुछ टुकड़े आज भी खोज रहा है... 

टटोल लेता हूँ डायरी...

टटोल लेता हूँ डायरी कभी-कभी
जब भूल जाता हूँ अपने आप को

मेरी डायरी के पन्ने, मुझे मुझसे बेहतर जानते हैं...

सैकड़ों जिंदगी जिया मैं...

सैकड़ों जिंदगी जिया मैं
हज़ारों बार गिरा मैं
गिर के गर मर भी गया
अगले ही पल जिंदगी से मिला मैं...

डायरी की मिट्टी में...

डायरी की मिट्टी में दफनाई थी कुछ यादें
कभी-कभी कुछ बूँद गिरी थी आँखों से मिट्टी में
कुछ अँकुर आये, फिर पौध बनी
आज खिला है पूरा बाग़

पूछा मैंने फूलों से...
दफनाए तो पन्ने थे, कब-कैसे सब ये बीज बने ?