Wednesday 31 August 2011

एक छोटी सी गुजारिश बादलों से...



सोचता हूँ आज बादलों की सैर कर आऊं,
सुना है बरसे नहीं हैं काफी दिनों से
शायद मेरी कुछ बातें सुन बरस ही जाएँ... 

इन बादलों को आसमां से प्यार है शायद
ये जमीन क्या समझे बादलों के इस प्यार को
बरस तो जाते हैं जमीन पर फिर देखते हैं सूरज की राह
कुछ फिर से बादल बन उड़ जाते हैं आसमां को
कुछ बेचारे यूँ ही खो जाते हैं हवा संग...

ये बादल भी क्या समझेंगे मेरी बेबसी को
कि आखिर क्यूँ है मुझे इनसे इतना प्यार
अब तो कुछ पुरानी यादें, बस इनकी ही मोहताज हैं
कि कब ये बरसें और मिट्टी की वो भीनी-सी खुशबू मेरी यादों को महका दे...

बस इतनी-सी गुज़ारिश कर लूँ इन बादलों से
कि जब कभी ये देख लें मुझे मेरी जमीन पर
थोड़ा बरस ही लें मेरी खुशियों संग
और दे जाएँ मुझे उन सुनहरी यादों की उमंग...


Saturday 27 August 2011

aquarium की मछली...

समुंदर की गहराइयों में रहने वाली एक मछली,
आई है एक्वेरियम में रहने कुछ महीनो पहले
ये शीशे की दुनिया खूब चमकती है
गर थोड़ी धूल-मिट्टी जम जाये तो मालिक सफाई कर देता है
चारे के लिए दूर भटकना नहीं पड़ता अब
फुर्सत मिलने पर लोग पुचकारते भी हैं,
खुश होते हैं मछली को देख कर
अलग-अलग नाम भी दिए हैं कुछ ने
मछली काफी खुश है इस सभ्य दुनिया में
बाज़ार में कुछ कीमत रखती थी,
तब जाकर जगह मिली इस एक्वेरियम में
शुरुआत में थोड़ा इतराई भी थी इस बात पर

पिछले कुछ दिनों से ना जाने क्यूँ मछली उदास सी है
अब ये रोज एक-सी ज़िन्दगी, जिसके मायने ये घड़ी की सुइयां तय करती हैं...
भला कोई ज़िन्दगी है क्या ?
मछली के आँसू भी कोई देख नहीं पाता
अब तक शायद एक्वेरियम का पानी भी खारा हो चुका होगा

अभी कुछ 8-10 दिन पहले की बात है,
मालिक कुछ ज्यादा ही व्यस्त था अपनी दुनिया में
भूल गया था चारा-पानी देना
आज फुर्सत मिली तो उसने देखा मछली की हरकतें सब गायब हैं
बिना पानी के तो देखा था, पर पानी में भी कोई मछली मरती है क्या ?
अब ये केवल एक गन्दगी है एक्वेरियम के लिए,
ये सोचकर मालिक ने भी इसे कूड़े में फ़ेंक दिया...

उस कूड़े के ढेर में आकर मछली अब सड़ गयी है,
मछली आज मर गयी है...


दोस्ती सपनों से...

कभी मैंने भी की थी दोस्ती कुछ सपनों से,
जो गहराती गयी संग समय के
पता था कि संग छूटेगा इनसे पहुचुँगा जब मंजिल पे
और दोस्ती होगी कुछ और नए सपनो से

शायद लायक ना था मैं इन सपनो के,
छोड़ चल दिए मुझे बीच में ही...
बस इतना पता था कि ये सपने हैं नए ज़माने के
ना था पता कि संग छोड़ देंगे पहले ही मंजिल पाने के
अब तो डर लगता है इन सपनो के आने से
फिर से कहीं सोच ना लूँ खुद को अलग ज़माने से
कहता हूँ अब अपने सिरहाने से
ना मिलाओ मुझे उस अजनबी दुनिया से
पर इन खुली आँखों का क्या...



मैं क्यूँ करूँ गम इन सपनो के खो जाने का
गम तो होता है उसका जो कभी अपना था
ये तो सपना था सपना बन कर रह गया

फिर कभी आएगी इन सपनो से मुलाकात की बारी,
जाने क्यूँ इनसे दोस्ती रखना आदत है हमारी...

Wednesday 24 August 2011

प्यार, इश्क और मोहब्बत...

This poem is a work of FICTION. If there is any similarity with anyone, it’ll be just a COINCIDENCE. My intention is not to hurt someone’s feelings, but still if someone hurts than, I sincerely apologize. 

इश्क  चीज  है  क्या  ये  बन्दे , आज तुम्हे  मैं  ये बतालऊँ,
exactly तो  पता  नहीं , एक -आधा किस्से  ही  सुनाऊं...

दिल  है पतंग, उड़ा इधर  -उधर,
कुछ  ऊँचा -नीचा, कोई  थी  ना   डगर.
कोई  लूट  ले  गया  ये पतंग,
और  दिखा  गया है  इश्क दा  रंग.
फिर  उडी  पतंग जो  डोर  संग,
और दिखे  दुनिया  दे  नए -नए रंग.
पतंगों  की  भीड़  में,
कुछ ऊँचे  और  ऊँचे ही  उड़े.
कभी  कट  भी गए  badluck से गर,
संग  नयी  ले डोर उड़े.

......................................

इश्क  के  मैदां  में जो कूदा,
उसे  दिखा फिर  कोई ना दूजा

कोई जज्बाती   बन  जाये,
और शादी  सपनो  में भी सजाये.

कोई कहीं दुल्हनिया भगाए,
कोई है घर  वालों  से मिलाये.

जज्बातों  में बहते  जाये,
pizza-hut में बिल  वो  बढाये.

यार्रों  संग खोपचे  में जाये,
प्यार  संग CCD आजमाए.

उनके  संग mac-D हो  जाये,
बाकी  दिन  बंद -मख्खन  खाए.

कुछ दीवाने  gym भी जाते,
सल्लू  बनने  की कसमें  हैं खाते.

कुछ ने तारे  भी हैं तोड़े,
फिर कहीं से दिल  के तार ये जोड़े.

कहीं किसी ने रब है खोजा,
कुछ चले  किसी  संग फिर पकड़ा दूजा.

कुछ तो seriously रात  भर हैं रोते,
फिर भी कहाँ  ये किस्से  ख़त्म युहीं  हैं होते...

मैंने  तो  इतने  ही जाने,
बाकी  तुम  भी हो सयाने.
तुम भी कहाँ इससे  अनजाने.
लिखने  लगो  तो diary भर दो,
कुछ गलत  लिखा, किसी का  दिल दुखा...तो मुझे  माफ़ कर दो.

मुझे माफ़ कर दो…

Tuesday 23 August 2011

आँसुवों का इंधन...

मेरे सपने भी ऊँची उड़ान नहीं भरते आंसुवों के इंधन बिना
कुछ ज्यादा ही महंगा है

आँखों को सूख जाना ही अच्छा लगता है अब... 


एक दस्तक यादों के दरवाज़े पे...

आज यादों के दरवाजे पे एक दस्तक हुई 
और जाना पहचाना सा एक चेहरा नजर आया
कुछ धुंधला सा था वो
और मैं पहचान ना सका
पर कुछ बात थी उसमे ना जाने क्यों आलम थम सा गया

आये कई चेहरे सामने, कुछ पुराने कुछ अनजाने 
और साथ आई एक हसीन यादों की चमक 
इस उलझन के अँधेरे को मिटाने 

आंसू बस निकलने को थे 
पर वादा जो किया था उनसे 
कि ना आएगी कभी इन आँखों में नमी 
मानो की उस लम्हे ने उस वादे को जी लिया 
होठों पे एक मुस्कराहट सी आयी
जो उन खुशनुमा पलों की तस्वीर सामने लायी 

थोड़ा मुश्किल से हुआ ये यकीन 
मेरा कल था इतना हसीन 
वो छोटी-छोटी सी बातों में भी 
खुशियाँ होती थी मेरे संग 
और जिंदगी जीने का था 
अपना कुछ लगा ही ढँग 

शायद कुछ बात थी तुम्हारे साथ में 
नजरें हटती ही नहीं थी तुम्हारे चेहरे से 
या यूँ कहो तुम्हारी आँखों में
और कभी ख़त्म ना होने वाली बातों से ही दुनिया देखता था मैं 

तुम्हारी मासूम सी आँखें कभी देख ना पायी इस बदलती दुनिया का रंग 
और मैं भी जान ना सका वक़्त संग बदलने का ढ़ंग 
जब होश आया तो बस जाना कि वक़्त और दुनिया संग 
बदल गए हैं हम दोनों भी 

हाँ फासले जरूर हुए थे, जो देख सकता हूँ नक्शों में आज भी 
पर कुछ खाइयाँ ना जाने कबसे गहराती चली गयी 
और मैं जान ना सका 
शायद तुम्हारी आखों ने बदलती दुनिया को पढ़ना सीख लिया 
और मैं ना पढ़ पाया तुम्हारी मासूम सी आँखों का बदला रंग 

तभी डोर बेल के संग हकीकत के दरवाजे पे दस्तक हुई 
और दरवाजा यादों का खुद-ब-खुद बंद हो गया

कभी फिरसे मौका मिले तो शायद जान पाउँगा वो बात 
कि आखिर क्यों ?
यादों के दरवाजे के आर-पार ही सिमट के हर गयी हमारी मुलाकात