Wednesday 24 August 2011

प्यार, इश्क और मोहब्बत...

This poem is a work of FICTION. If there is any similarity with anyone, it’ll be just a COINCIDENCE. My intention is not to hurt someone’s feelings, but still if someone hurts than, I sincerely apologize. 

इश्क  चीज  है  क्या  ये  बन्दे , आज तुम्हे  मैं  ये बतालऊँ,
exactly तो  पता  नहीं , एक -आधा किस्से  ही  सुनाऊं...

दिल  है पतंग, उड़ा इधर  -उधर,
कुछ  ऊँचा -नीचा, कोई  थी  ना   डगर.
कोई  लूट  ले  गया  ये पतंग,
और  दिखा  गया है  इश्क दा  रंग.
फिर  उडी  पतंग जो  डोर  संग,
और दिखे  दुनिया  दे  नए -नए रंग.
पतंगों  की  भीड़  में,
कुछ ऊँचे  और  ऊँचे ही  उड़े.
कभी  कट  भी गए  badluck से गर,
संग  नयी  ले डोर उड़े.

......................................

इश्क  के  मैदां  में जो कूदा,
उसे  दिखा फिर  कोई ना दूजा

कोई जज्बाती   बन  जाये,
और शादी  सपनो  में भी सजाये.

कोई कहीं दुल्हनिया भगाए,
कोई है घर  वालों  से मिलाये.

जज्बातों  में बहते  जाये,
pizza-hut में बिल  वो  बढाये.

यार्रों  संग खोपचे  में जाये,
प्यार  संग CCD आजमाए.

उनके  संग mac-D हो  जाये,
बाकी  दिन  बंद -मख्खन  खाए.

कुछ दीवाने  gym भी जाते,
सल्लू  बनने  की कसमें  हैं खाते.

कुछ ने तारे  भी हैं तोड़े,
फिर कहीं से दिल  के तार ये जोड़े.

कहीं किसी ने रब है खोजा,
कुछ चले  किसी  संग फिर पकड़ा दूजा.

कुछ तो seriously रात  भर हैं रोते,
फिर भी कहाँ  ये किस्से  ख़त्म युहीं  हैं होते...

मैंने  तो  इतने  ही जाने,
बाकी  तुम  भी हो सयाने.
तुम भी कहाँ इससे  अनजाने.
लिखने  लगो  तो diary भर दो,
कुछ गलत  लिखा, किसी का  दिल दुखा...तो मुझे  माफ़ कर दो.

मुझे माफ़ कर दो…

No comments:

Post a Comment