Monday 22 August 2011

डाइरी भर गयी है मेरी...

डायरी भर गयी है मेरी, कुछ छोटी और पतली सी ही थी
काफी साथ दिया था इस डायरी ने
मेरी कविता के पौधे को पेड़ बनते देखा है इसने
पेंसिल और डायरी यही तो थे मेरे अकेलेपन के साथी...

याद है मुझे आज भी वो दिन जब ट्रेन के सफ़र में डायरी और पेन्सिल की दोस्ती हुई थी
पहले दिन महफ़िल काफी लम्बी सजी थी.
पूरी तीन कविताओं के बाद ही आराम किया था हमने
सफ़र लम्बा था ट्रेन का, कहने के लिए लोग भी काफी थे आस-पास
मैं बस अपने नए यारों संग खुश था, डायरी, पेन्सिल और वो नयी जन्मी कविता की कलियाँ...

आज भी डायरी संग है मेरे
अकेली, दबी हुई सी, बाकी किताबों के नीचे
वो कलियाँ पेन्सिल से जो बनायीं थी, कुछ धुंधली सी दिखती हैं अब
मैंने भी इन कलियों की तस्वीर निकाल कर लैपटॉप में सजा दी है...

जब से लैपटॉप से दोस्ती हुई है डाइरी कुछ ज्यादा ही मायूस सी लगती है
ये नया दोस्त भी कमाल का है,
नये-नये चेहरों से मिलवाता है मुझको चेहरों की एक किताब में...

दोस्तों से याद आया, आते थे जब भी डायरी जरूर पूछते थे सभी
अब दोस्त भी ज्यादा आते नहीं और डायरी भी बैठी है गुमसुम सी कहीं
वो सब भी मुझसे और डायरी से लैपटॉप में ही मिल जाते हैं...

कुछ नंबर और पते भी लिखे थे पीछे कहीं डायरी में,
कि अब ख़ास नंबर फ़ोन में ही रख लेता हूँ और पते तो रोज ही बदल जाते हैं
अब तो बस यूँ ही कभी देख लेता हूँ डायरी,
वो कुछ बची हुई पेंसिल की लिखाई की तस्वीर के बहाने.
कि डायरी अब भर गयी है ...

2 comments:

  1. Kafi Achhi hai , I too used to write in Diary before , slowly that habit got changed to writing in word doc on Laptop ....They way you relate real life in words is amazing ..keep it up !!

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  2. thanks...ur feedback is imp :)

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