सोचता हूँ आज बादलों की सैर कर आऊं,
सुना है बरसे नहीं हैं काफी दिनों से
शायद मेरी कुछ बातें सुन बरस ही जाएँ...
इन बादलों को आसमां से प्यार है शायद
ये जमीन क्या समझे बादलों के इस प्यार को
बरस तो जाते हैं जमीन पर फिर देखते हैं सूरज की राह
कुछ फिर से बादल बन उड़ जाते हैं आसमां को
कुछ बेचारे यूँ ही खो जाते हैं हवा संग...
ये बादल भी क्या समझेंगे मेरी बेबसी को
कि आखिर क्यूँ है मुझे इनसे इतना प्यार
अब तो कुछ पुरानी यादें, बस इनकी ही मोहताज हैं
कि कब ये बरसें और मिट्टी की वो भीनी-सी खुशबू मेरी
यादों को महका दे...
बस इतनी-सी गुज़ारिश कर लूँ इन बादलों से
कि जब कभी ये देख लें मुझे मेरी जमीन पर
थोड़ा बरस ही लें मेरी खुशियों संग
और दे जाएँ मुझे उन सुनहरी यादों की उमंग...
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