Tuesday 16 August 2011

बरसात के दिन @ DUN



आसमां से बरसती बूंदों को देख, बीती बातें याद आई अनेक
इस रिमझिम सी बरसात में, कभी भीगा था मैं दून में...

वो दिन ही कुछ रंगीन थे, रंग तो याद नहीं पर हसीन थे
सूरज उगता तो था मगर मुशकिल से ही दिख पाता
दिखता भी क्यूँ ...

जब आसमां ने ही ओड़ ली हो बादलों की चादर,
तो हम क्यूँ देर करें सुस्ताने में पल भर
समय की टिक -टिक संग हमे याद आया कुछ देर से
हमे जाना है किसी और जहाँ, डी आई टी है जिसका नाम वहां

हर तरफ बिखरा सा पानी, याद है मुझे वो बातें मुंह-जुबानी
लेक्चर तो था एक बहाना, यारों से है जो मिलने जाना
फिर मुलाकात होने पर, मौसम की तारीफ़ एक-दूसरे को सुनाना
क्लास में तो कम, पर ढाबे पे अपना सैशन लगाना
धीमी-धीमी बूंदों संग वो अदरक की चाय पी जाना
बरसात थमी तो सही, वरना यूँ ही भीगते हुए घर को वापिस चल जाना


राजपुर रोड पे गर्ल्स का वो रेनी-डे स्पेशल फैशन दिखाना.
और बिना किसी छतरी के यूँही भीगते जाना...
पूरा दिन होता था यूहीं मस्त, अड्डे पे आके हो जाते थे पस्त
फिर शुरू होता था मैगी, मोमो, पारले-जी संग चाय का वो धुआं-धुआं सा दौर
और गिटार पर एक्सपेरिमेंट करता था कोई और
हँसते हुए बीतते थे वो दिन संग यारों के,
फिर रात को मुलाकात होती आसमां में सितारों से...
आज भी संग है ये आसमां,
पर आसमां से बरसते पानी को देखने की वो फुरसत कहाँ
मिट्टी की वो हल्की-सी खुशबू कहाँ
इस मेट्रो की लाइफ में वो बात कहाँ...

आज भी भीगा हूँ बरसात में खुद को बचते-बचाते,
बस देख रहा चुपचाप से कुछ यादों को धुंधलाते... 


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