समुंदर की गहराइयों में रहने वाली एक मछली,
आई है एक्वेरियम में रहने कुछ महीनो पहले
ये शीशे की दुनिया खूब चमकती है
गर थोड़ी धूल-मिट्टी जम जाये तो मालिक सफाई कर देता है
चारे के लिए दूर भटकना नहीं पड़ता अब
फुर्सत मिलने पर लोग पुचकारते भी हैं,
खुश होते हैं मछली को देख कर
अलग-अलग नाम भी दिए हैं कुछ ने
मछली काफी खुश है इस सभ्य दुनिया में
बाज़ार में कुछ कीमत रखती थी,
तब जाकर जगह मिली इस एक्वेरियम में
शुरुआत में थोड़ा इतराई भी थी इस बात पर
पिछले कुछ दिनों से ना जाने क्यूँ मछली उदास सी है
अब ये रोज एक-सी ज़िन्दगी, जिसके मायने ये घड़ी की सुइयां
तय करती हैं...
भला कोई ज़िन्दगी है क्या ?
मछली के आँसू भी कोई देख नहीं पाता
अब तक शायद एक्वेरियम का पानी भी खारा हो चुका होगा
अभी कुछ 8-10 दिन पहले की बात है,
मालिक कुछ ज्यादा ही व्यस्त था अपनी दुनिया में
भूल गया था चारा-पानी देना
आज फुर्सत मिली तो उसने देखा मछली की हरकतें सब गायब हैं
बिना पानी के तो देखा था, पर पानी में भी कोई मछली मरती है
क्या ?
अब ये केवल एक गन्दगी है एक्वेरियम के लिए,
ये सोचकर मालिक ने भी इसे कूड़े में फ़ेंक दिया...
उस कूड़े के ढेर में आकर मछली अब सड़ गयी है,
मछली आज मर गयी है...
No comments:
Post a Comment