Thursday 18 August 2011

वो कलम जिससे मैं प्यार लिखता था ...

वो कलम जिससे मैं प्यार लिखता था आज भी मेरे पास है
पर वो दवात प्यार की चल दी थी तुम संग कहीं
बची-खुची स्याही से लिखे थे एक-दो कागज
बिना स्याही के कलम जंक खा जाती शायद
तो अब मैं दर्द की स्याही से लिखता हूँ
कमी नहीं है ना... 

और इसी बहाने कहीं-न-कहीं तुम्हारा जिक्र भी आता है... 


1 comment: