डायरी की मिट्टी में दफनाई थी कुछ यादें
कभी-कभी कुछ बूँद गिरी थी आँखों से मिट्टी में
कुछ अँकुर आये, फिर पौध बनी
आज खिला है पूरा बाग़
पूछा मैंने फूलों से...
दफनाए तो पन्ने थे, कब-कैसे सब ये बीज बने ?
कभी-कभी कुछ बूँद गिरी थी आँखों से मिट्टी में
कुछ अँकुर आये, फिर पौध बनी
आज खिला है पूरा बाग़
पूछा मैंने फूलों से...
दफनाए तो पन्ने थे, कब-कैसे सब ये बीज बने ?
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