Sunday 13 November 2011

कुछ अजीब ख्यालों का ख़ास बन जाना...

कुछ अजीब से ख्याल आते रहे
जाने क्यूँ...
मैं जान भी ना सका और तुम कुछ ख़ास बन गए
जाने क्यूँ...
अब वो ख्याल अजीब लगते नहीं
कि हर एक ख्याल में अब होती हो तुम्ही... 

आखिर क्या है और क्यूँ है ?
जैसे किसी मौसम की दस्तक संग नए पंछियों का चहचहाना
शाम की सुस्त करवट संग खिड़की के पास बैठ करारी चाय पी जाना
टी वी पर आने वाले हर चेहरे में वो एक शक्ल खोजते जाना
मेसेज बॉक्स में पड़े वो मेसेजेस बन जायें जब हँसने का बहाना
उन बेतुकी बातों में भी अपना दिमाग लगाना
और जाने क्या सोच सोच कर यूँ ही खुद में हँसते जाना
शायद कुछ ऐसा ही होता है
कुछ अजीब ख्यालों का ख़ास बन जाना...


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