Wednesday 25 April 2012

वो तारों की महफ़िल...



कुछ सालों बाद एक जानी पहचानी-सी राह से गुजरा
एक बड़ी ख़ास जगह नजर आई
यूँ तो जगह छोटी ही थी,
पर वो कुछ बड़ा-सा पत्थर ख़ास था कभी मेरे लिए
चाहता तो था कुछ देर बैठूं उस पर
पर एक प्यारा-सा जोड़ा बैठा था
जो शायद काफी था उस पत्थर के लिए, और हाँ मेरी यादों के लिए भी
वो दोनों तारों की महफ़िल ही निहार रहे थे
इस महफ़िल के तारों को तो मैं भी जानता हूँ
कुछ को तो नाम भी दिए थे मैंने, अब याद नहीं
बस इतना याद है, एक मीठा-सा झगडा हुआ था नाम को लेके किसी के संग,
और लगभग रोज ही ताकते थे इन तारों को हम
शायद इस आस में कि गर कोई टूटे तो कुछ मांग ही लें...
सचमुच कितने अजीब होते हैं ये तारे भी,
दूर बहुत हैं
रोशनी तो हमे दे नहीं पाते,
बस दे जाते है टूटने पर कुछ को उनकी ख्वाहिशें
मैंने तो बस तुम्हारी ख़ुशी ही मांगी थी,
शायद मिली भी होगी तुम्हे
अपने लिए कमबख्त कभी कुछ मांग ना सका...

इस महफ़िल के तारों का तो पता नहीं,
पर हाँ,
जरूर टूट गया था वो प्यारी सी मुलाकात का सिलसिला
और तुम भी कुछ नए तारों की महफ़िल तले चली गयी दूर कहीं...

तारों का टूटना तो अब भी देख लेता हूँ कभी-कभार
बस थोड़ा मुस्कुरा लेता हूँ और अब रखता नहीं मैं इनसे कुछ आस
क्यूंकि अब शायद कोई वजह नहीं रही कि तारों का टूटना लगे कुछ ख़ास...




P.S. : I am not a hard core lover...character में डूब के लिखा है :)

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