Saturday 21 December 2013

मैं धुन खोजता रहा...

मैं धुन खोजता रहा अपने शब्दों के लिए
शोर कुछ ज्यादा ही था ज़माने का,
वो कुछ अच्छी वाली धुनें मिली ही नहीं
मैं गया शोर से दूर, काफी दूर...
सन्नाटे की धुन काफी अच्छी थी
मैं बैठा कुछ देर और मुस्कुराया,
मुस्कराहट संग एक खयाल आया...

खयाल था,
केवल धुन ही काफी होती है कभी-कभी
और कभी-कभी केवल शब्द...


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