Sunday 1 November 2015

कहाँ है वो ग्रीन-रूम ?


सच की खोज में 
भटक रहा हूँ रोज
रंगमंच की गलियों में बस कुछ रूप दिखते हैं इसके
कुछ रूप देखें हैं मैंने, कुछ देखने बाकी हैं 
ये किरदार पहनता है नए-नए 
ऑडियंस मिले ना मिले, इसके शो चलते रहते हैं 
यहाँ दिन या रात नहीं होती, यहाँ होती है बस निरंतरता 
ये आज़ाद है समयचक्र के बंधन से... 

मुझे तलाश है इसके ग्रीन-रूम की 
जहाँ ये किरदार बदलता है 
जहाँ शायद ये चेहरा साफ़ करता होगा किरदार बदलने से पहले 
शायद दिख जाये मुझे इसका असली रूप 

आखिर कहाँ है वो ग्रीन-रूम ?


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