Saturday 10 December 2011

आज चाँद भी कुछ है ख़फा-ख़फा...



आज चाँद भी कुछ है ख़फा-ख़फा
इतनी देर से यूँ जो नहीं दिखा
इस अंधियारी-सी रात में,
शायद हमने कुछ की है खता
ये चाँद तो सबका चाँद है,
अपने का भी कुछ नहीं पता
आज चाँद भी कुछ है ख़फा-ख़फा...


अब तारे गिनना आसां है,
कुछ काम का अब तो नहीं पत
कोई तारा गर यूँ टूट ही ले,
कुछ मांग ही लूँ इसमें ही मज़ा
आज चाँद भी कुछ है खफा-खफा...

इस जाड़े की लम्बी रात में,
अब इन्तेजार सूरज का है
वो धूप संग लाये खुशबू,
यूँ बेकरार मैं कब से हूँ...

इस गुनगुनाती धूप में,
ये खिलखिलाता सा चेहरा
वो चाँद तो गया है छुप शायद,
एक चाँद है संग जो है मेरा
आज चाँद भी फिर से निकलेगा,
खुश होगा देख संग हमदम मेरा
आज चाँद भी...


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