आज यादों के पानी में डुबकी लगाने
का मन हुआ
डुबकी सोचके डूबा था ये तो गहरा
गोता हुआ
गोता जितना गहरा हुआ
खजाना यादों का और सुनहरा हुआ...
सूरज शायद आसमां में अपने पूरे
जोर पे था
और मैं भी कहीं छोटी राह पे चलने
को मजबूर था
हाफ-पैंट पहने बड़ा रहा था मैं
छोटे-छोटे कदम
और धूप-प्यास से निकला जा रहा
था मेरा दम
गले में मिल्टन की एक बोतल
जो लटकी थी
शायद उसी पे ही मेरी जान अटकी
थी
धूप से चेहरा लाल था
और कुछ बड़े से बैग ने किया हाल
बदहाल था...
सारे मौसम शायद दोस्त थे मेरे,
तभी तो सर्दी , गर्मी और बरसात
का ना था कोई मलाल
बस थोड़ा मायूस होता था बरसात
में,
जब देखता था मैदान का बुरा हाल
घर पे कैसे टिकूंगा ये सोचकर,
चेहरा गुस्से से होता
था लाल
फिर थक हार के बैठ जाता,
होमवर्क निपटाने का था जो
बड़ा सवाल
बेसब्री से इन्तेजार करता था
संडे का
दिन भर क्रिकेट का, जो होता
था पूरे साल
यूँ ही गुजरता था हर साल,
फ्यूचर का कहाँ था कोई
सवाल...
आज में ही जीता था
और आज का ही पानी पीता था
अब तो कहने को आज में जीता
हूँ
कल की यादों का पानी पीता
हूँ
कल की फिकर है ज्यादा इतनी
फ्यूचर का टेंशन सीता हूँ
बस यादों का पानी पीता हूँ,
और कहने को आज में जीता
हूँ...
बहुत सुन्दर
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