ये खवाबों की स्वेटर बुनता और पहनने को उसे दे देता.
सर्दियां पूरे साल ही रहती थी उन पहाड़ों पर.
दोनों की सर्दियां अच्छे से कट रही थी,
इसने भी कुछ ज्यादा ही बड़े ख्वाब बुनना शुरू कर दिया.
बुनता भी क्यूँ नहीं इतने साल आज तक सर्दियों में गुजारे थे...
अब ख्वाब बड़े थे, महंगे थे...
महंगे ख्वाबों को बुनने में कुछ वक़्त ज्यादा ही लगता है...
इसे भी भरोसा था अपने आप पर...
बस एक छोटी सी गलती कर बैठा,
बाँट दिए ख्वाब उसके संग ...
वो ख्वाब कोई बिकावु नहीं थे.
ये इसके अपने ही थे और अपना समझ कर ही उसके संग बांटे थे...
इसने तो बेचे नहीं थे,
लेकिन उसने बिकावु समझ के युही मुफ्त में खरीद लिए...
ख्वाब तो इसने देखे थे पर स्वाद उसको कुछ ज्यादा ही लग गया ख्वाबों का...
वो शायद नादान, कमसिन ही रही उम्र के साथ साथ...
एक दिन गाँव में कोई सहरी व्यापारी आया जो सच में कुछ बड़े-बड़े ख्वाब बेचता था...
और अच्छी बात ये थी उन ख़्वाबों को खरीदने के लिए वक़्त नहीं कुछ पैसे लगते थे...
जो उस व्यापारी के पास कुछ ज्यादा ही थे.
वो चल दी उस अजनबी व्यापारी संग...
इसे थोड़ी सी मायूसी हुई थी.
आज सुना है इसके ख्वाब हकीकत बन गए हैं.
और कुछ कम वक़्त में ही इसने ख़रीदा है इनको...
लेकिन कहीं ना कहीं इसे लगता है, वो ख्वाब आज भी ख्वाब ही है.
क्यूंकि इन ख़्वाबों की तस्वीर में दिखने वाला वो चेहरा तो आज गायब ही है, कहीं खो गया है...
ख्वाब शायद फिर से ख्वाब बनकर ही रह गया ...
सर्दियां पूरे साल ही रहती थी उन पहाड़ों पर.
दोनों की सर्दियां अच्छे से कट रही थी,
ये अपने ख्वाब और उसके साथ में खुश था
और वो इसकी दी हुई स्वेटर में ...
इसने भी कुछ ज्यादा ही बड़े ख्वाब बुनना शुरू कर दिया.
बुनता भी क्यूँ नहीं इतने साल आज तक सर्दियों में गुजारे थे...
अब ख्वाब बड़े थे, महंगे थे...
महंगे ख्वाबों को बुनने में कुछ वक़्त ज्यादा ही लगता है...
इसे भी भरोसा था अपने आप पर...
बस एक छोटी सी गलती कर बैठा,
बाँट दिए ख्वाब उसके संग ...
वो ख्वाब कोई बिकावु नहीं थे.
ये इसके अपने ही थे और अपना समझ कर ही उसके संग बांटे थे...
इसने तो बेचे नहीं थे,
लेकिन उसने बिकावु समझ के युही मुफ्त में खरीद लिए...
ख्वाब तो इसने देखे थे पर स्वाद उसको कुछ ज्यादा ही लग गया ख्वाबों का...
वो शायद नादान, कमसिन ही रही उम्र के साथ साथ...
एक दिन गाँव में कोई सहरी व्यापारी आया जो सच में कुछ बड़े-बड़े ख्वाब बेचता था...
और अच्छी बात ये थी उन ख़्वाबों को खरीदने के लिए वक़्त नहीं कुछ पैसे लगते थे...
जो उस व्यापारी के पास कुछ ज्यादा ही थे.
वो चल दी उस अजनबी व्यापारी संग...
इसे थोड़ी सी मायूसी हुई थी.
आज सुना है इसके ख्वाब हकीकत बन गए हैं.
और कुछ कम वक़्त में ही इसने ख़रीदा है इनको...
लेकिन कहीं ना कहीं इसे लगता है, वो ख्वाब आज भी ख्वाब ही है.
क्यूंकि इन ख़्वाबों की तस्वीर में दिखने वाला वो चेहरा तो आज गायब ही है, कहीं खो गया है...
ख्वाब शायद फिर से ख्वाब बनकर ही रह गया ...
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