बचपन में एक बस्ता लेकर चलता था
मैं अपने संग
छोटा मगर कुछ भारी सा,
बस्ता मेरी जिम्मेदारी का
धीरे-धीरे बस्ता हल्का होता गया
मगर जिम्मेदारियों का बोझ फिर भी कम ना हुआ
फिर एक समय ऐसा भी आया बस्ता जाने कहाँ गुम गया
शायद काबिल नहीं था वो भी नयी जिम्मेदारियों के...
अब एक नया बस्ता मिला है लैपटॉप संग
जिसमे सारी जिम्मेदारियां सिमट जाती हैं और हाँ ज़िन्दगी
भी...
Awesome .....Perfectly captures our transition from school world to professional word :) !!
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