Sunday 23 October 2011

तुम्हारी आँखों का काजल...

तुम्हारी आँखों का काजल चश्मों के अंदर से झांकता होगा
मेरी राह ताकता होगा

शायद उसे भी पता है
ये शीशे के उस पार काजल वाली आँखें मुझे हैं भाती
ये आँखें ही तो हैं जो चश्मे और काजल को रोजगार हैं दिलाती
काजल सुकून देता होगा और चश्मा बचाता होगा धूल से

मत उतारा करो चश्मे और काजल को
बेचारे भूखे पेट मर ही जायेंगे
वैसे भी इन बेशकीमती आँखों को सख्त जरूरत है पहरेदारी की... 


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