Monday 21 September 2015

हर सिपाही लिखता है एक कविता...

हर सिपाही लिखता है एक कविता

कविता शौर्य की
कविता साहस की
कविता बलिदान की
कविता स्वाभिमान की

कविता अनदेखी संवेदना की
कविता अनोखे त्यौहार की
कविता बिछड़े यार की
कविता देश से प्यार की

कविता बर्फीली सुबह की
कविता रेगिस्तानी धूप की
कविता अकेली साँझ की
कविता बँकर से दिखने वाले चाँद की

ये कविता कभी ख़त्म नहीं होती
ये कविता चलती रहती है सिपाही संग
सिपाही शर्माता है इस कविता को कागज पर लिखने से
उसे डर है, कि फतांसी दुनिया में रहने वाले सिविलियन्स उसके सच को फतांसी ना समझ लें

कभी मौका मिले तो पहनना सच का चश्मा
और पढ़ना किसी सिपाही यार को... 



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