Wednesday 30 September 2015

बुद्ध बनने की चाह...

कल देखा था
आज भी देखा
कूड़े के ढेर में सोया हुआ पागल
ऐसे दृश्य अब बस दृश्य हैं
कोई सत्य नहीं...

क्या मर चुका है मेरे अंदर का सिद्धार्थ ?
अगर हाँ,
तो, क्यों जिंदा है बुद्ध बनने की चाह ? 


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