कल देखा था
आज भी देखा
कूड़े के ढेर में सोया हुआ पागल
ऐसे दृश्य अब बस दृश्य हैं
कोई सत्य नहीं...
क्या मर चुका है मेरे अंदर का सिद्धार्थ ?
अगर हाँ,
तो, क्यों जिंदा है बुद्ध बनने की चाह ?
आज भी देखा
कूड़े के ढेर में सोया हुआ पागल
ऐसे दृश्य अब बस दृश्य हैं
कोई सत्य नहीं...
क्या मर चुका है मेरे अंदर का सिद्धार्थ ?
अगर हाँ,
तो, क्यों जिंदा है बुद्ध बनने की चाह ?
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