आज फिर कुछ जल्दी से आँखें खुली
और सुबह को नए दिन के लिए सजते हुए देखा
बर्फ से ढकी चट्टानों को देख यूँ लगा,
मानो कोई परी अपने सूरज के इन्तेजार में है
एक ठंडी और साफ़ हवा,
बिना खुशबू के भी एक ताजा सी महक दे रही थी...
पढ़ा था मैंने किताबों में,
कभी कहा था किसी शहन्शाह ने,
स्वर्ग धरती पे यहीं कश्मीर में है
सच ही कहा था अब जान पाया हूँ
यूँ तो अपना घर सभी के लिए स्वर्ग सा होता है,
जिसे छोड़ने का अफ़सोस हुआ था थोड़ा सा
मगर घर से दूर भी स्वर्ग में ही रहने आया हूँ...
आज घरों में दिवाली है
दिये,मिठाई,प्यार और आतिशबाजी का त्यौहार
आतिशबाज़ी से याद आया,
बचपन में थोड़ा सा डरता भी था मैं इनसे कभी-कभी
पर अब तो आतिशबाज़ी की आदत सी हो गयी है
वरना ज़िन्दगी सूनी-सूनी सी लगने लगती है
दिवाली के लिए किसी अमावस का इन्तेजार नहीं है अब
दिये की तरह जलता हूँ दिन-रात कि देश मेरा रोशन रहे
और कहने को रोज ही दिवाली खेल लेता हूँ कि घरों में दिवाली
होती रहे...
अब तो आदत सी हो गयी है स्वर्ग में रहने की शायद
और एक अच्छी बात भी सुनी है मैंने,
"मरने के बाद शहीदों को स्वर्ग ही मिलता है"
तभी तो आतिशबाज़ी से रोज ही खेल लेता हूँ
और अब मरने से कहाँ मैं डरता हूँ
वो घर मेरा स्वर्ग बना रहे इसलिए इस स्वर्ग में रहता
हूँ...