Saturday 10 September 2011

सपनों का स्कूल...

कुछ इस तरह व्यस्त हूँ, कि फुरसत मिलती नहीं सपनों के स्कूल जाने की
सपनों के स्कूल की कोई उमर तो होती नहीं,
हाँ बस वो फीस शायद मैं जुटा पाता नहीं
'सही समय और चैन की नींद '...

पहले तो रोज ही चला जाता था मैं सपनों के स्कूल
अपनी मरजी के सब्जक्ट्स और टीचर्स
जब मरजी तब क्लास बंक, जब मरजी तब छुट्टी
और एग्जाम का भी टेन्शन नहीं...

अगली बार फुरसत से मिलूँगा जरूर प्रिंसिपल से, 
थोडा बहुत समझदार तो अब मैं भी हूँ
शायद सुन लेंगे मेरी कुछ बातें...

अब जमाना बदल गया है काफी, कुछ नए टीचर्स भी रखने होंगे
वरना कुछ लोग शिकायत करेंगे और सपनों के स्कूल आने से डरेंगे
बस कोई ये ना सोचे कि आकर सपनों के स्कूल,
कर दी उसने कोई बड़ी सी भूल...

मैं तो चलना सीख गया हूँ ज़माने संग
बस फिकर है मुझे उन मासूम नए चेहरों की,
कहीं बदल ना जाये उनके सपनों के रंग... 


1 comment:

  1. बहुत सुन्दर अंकित जी .. आपको मेरी शुभकामनायें !!!!!

    ReplyDelete