बदल गए हैं वो सारे मौसम जो गुजारे थे तेरे संग
कि अब मुझे भी फुरसत नहीं जो देखूँ इनका रंग
सारे एक से ही लगते हैं अब
बरसात में अब मैं भीगता नहीं
दिन भर ए सी में गरमी मुझे लगती नहीं
सर्दियां यहाँ होती नहीं...
मैंने भी तेरे संग गुजारे सब मौसम सम्हाल के रख दिए
हैं अलमारी में
बरसात में अलमारी से भीनी-सी खुश्बू आती है गीली
मिट्टी की
किसी को पता चले ना चले, बस मेरी यादें भीग जाती हैं
गर्मियों में अलमारी की दीवारों से बहती है एक ठंडी सी महक
और एक पल को मैं भी जाता हूँ चहक
सर्दियां यहाँ होती नहीं बस पंखे बंद हो जाते हैं उन कुछ
महीनो में
वो पुलोवर, मफलर, टोपी और दस्ताने आज भी अलमारी में ही हैं
कुछ एक-दो हिल-स्टेशन्स हैं दूर कहीं
जब जाता हूँ तो पुलोवर रख लेता हूँ, पहनने की जरूरत पड़ती
ही नहीं
उन पुरानी यादों की गर्माहट ही काफी होती है...
शायद तुम भी जानती हो
पहले बस मौसम बदलते थे वक़्त संग बाकी सब कहाँ
अब लगता है मौसम के अलावा सब कुछ बदलता है यहाँ
और हाँ मैंने भी वक़्त संग बदलना सीख लिया है...
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