Friday 16 September 2011

ये बारिश कुछ पूछती रहती है...

ये बारिश कुछ पूछती रहती है मुझसे हर बार
मैं हमेशा ही अनदेखा कर देता हूँ
आज बस में बैठने को जगह मिली
खिड़की के पास ही बैठा था
रेड लाइट पर बस रुकी,
तो फ़ुरसत से मैंने देखा बारिश को खिड़की के उस पार
फिर से कुछ पूछ रही थी...

क्या मियाँ आते नहीं अब भीगने को ?
मैं तो आज भी आसमान से बरस रही हूँ
आज भी बादलों का सन्देशा लाती हूँ
लेकिन तुम्हे तो फ़ुरसत ही नहीं
ऐसी भी क्या नाराजगी, जो ये शीशे की दीवार चढ़ा दी...

मेरे कुछ बोलने से पहले ही बत्ती हरी हो गयी
ट्रैफिक का शोर कुछ ज्यादा ही भारी था
बाय-बाय कहने का मौका तक नहीं मिला... 


1 comment:

  1. काश कह पाते तो बडा  अच्छा होता

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