Wednesday 21 September 2011

एक परी अकेली सी...

ये food-court सच में बड़ी अनोखी जगह है...
अलग अलग खाने के संग परियां भी दिखती हैं मुझे.
खाना तो कुछ ख़ास मिलता नहीं यहाँ,
हाँ परियां सब ख़ास हैं मेरे लिए.
या यूँ कहूँ इन परियों की वजह से ये जन्नत है मेरे लिए.  
मुश्किल से ही कोई परी अकेली दिखती है...

अभी कुछ 2-3 हफ्ते पहले की बात है एक परी दिखी थी अकेली सी
भीड़ ज्यादा पसंद नहीं उसे, कुछ देर से ही आती है वो.
यूँ तो भीड़ मुझे भी कुछ ख़ास पसंद नहीं,
पर ज्यादातर परियां इसी भीड़ संग ही दिखती हैं...

ये परी एक चश्मा भी लगाती है,
और अपने अकेलेपन में सम्हालती रहती है उसे बार-बार.
खाना खाते हुए फोन पर जाने क्या पढ़ती रहती है . 
टेबल भी हमेशा अकेली ही होती है उसकी...

अभी उस दिन शाम को CCD पर दिखी थी फिर से
इस बार उसके संग एक किताब थी जिसने आज फोन की जगह ली थी
बैठी थी कोने में कुछ 3-4 टेबल संग
मैंने अपने यार को बताया तो उसे उसके looks में attitude सा नजर आया
पता नहीं...

मैंने देखी है उन आँखों की मासूमियत .
दुनिया को उसका attitude दिखता है पर शायद अकेलापन नहीं.
सच में इस परी को कभी हँसते देखा तो मैंने भी नहीं
जाने कौन सी दुनिया में खोयी रहती है
इतना अकेला तो मैं अपनी तन्हाई मैं भी होता नहीं...

परी है ना...
शायद इंसानों के बीच आकर सहम सी गयी है...
    
P.S. thought of writing a story, but for the time just free flow of thoughts :)   

1 comment:

  1. Kaun hai ye Pari ...chalo kal FC mai hamein bhi dikhana :)

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