Tuesday 13 September 2011

कोहरे के परदे के पीछे...

कोहरे से ढकी पहाड़ियों के उस पार, कुछ परियां रहती हैं जहाँ...
सोचता हूँ, कल सुबह सूरज संग दौड़ लगाऊं और पहाड़ी के उस पार जाऊं
सुना है सूरज भी कुछ देर से पहुँचता है वहां
शायद शर्माता है परियों की खूबसूरती से
या फिर प्यार करता है इन परियों से...

सूरज के आने की खबर सुनकर,
ये परियां भी उड़ जाती हैं दूर देश कहीं
देश जो कुछ देर ही सूरज की पहुँच से दूर रहते हैं कहीं...

सूरज बड़ा ख्याल रखता है इन नाजुक परियों का
जान-बूझ कर छिपता है कोहरे के परदे के पीछे
इसे भी वो हँसती-खेलती परियां कुछ ज्यादा ही अच्छी लगती हैं
वरना भला सूरज के आगे किसी की चली है ?
इन परियों का पीछा करते-करते थकता भी है, पर फिर भी रुकता नहीं
वो परियों का हँसना-खेलना काफी होता है इसकी थकान मिटाने को...

बिना कोहरे वाले दिनों में परियां दिखती कहाँ हैं यूँ आसानी से,
सूरज बेचारा फिर थक जाता है
थक कर गुस्साता है, और हम सोचते हैं ये कमबख्त इतनी गर्मी क्यूँ ढाता है

माना कि सूरज को प्यार जताना नहीं आता
पर हाँ प्यार निभाना बेशक आता है...

हमे तो ये सूरज बस आग का एक गोला नजर आता है
जरा गौर से देखो तो दिखेगा,
इस कोहरे के परदे के पीछे ये भी अपना प्यार छिपाता है...


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