Tuesday 27 September 2011

भगत की कहानी, भगत की जुबानी...



दोस्तों आज शहीद-ए-आजम भगत सिंह जी का जन्मदिन है...भगत सिंह जी को श्रधांजलि देते हुए अपनी लिखी एक पुरानी कविता पोस्ट कर रहा हूँ :
   


आज़ादी को मान के दुल्हन, इस रण में मैं कूदा हूँ
डरता कहाँ हूँ मरने से, इस मौत का खेल भी खेला हूँ
जलियावाला बाग की वो बैसाखी, कहाँ मैं भूला हूँ
लाल बनी थी मिट्टी उस दिन, सपनो में रोज मैं झेला हूँ




बंदूकें जो कुछ मैंने, बोई थी बचपन में
आज पकी है फसल वहीँ, आज़ादी धुन बस मन मे
कोई आँख कहीं जो यूँ ही उठी, मेरे इस भारत देश पे
वो आँख उसी पल बंद कर दूँ,बस यही मेरा सन्देश है

इश्क किया है देश से मैंने, रंग दिया बसंती चोला
अब कहाँ रुकूँगा मैं, बन गया हूँ आग का गोला
अब दुश्मन तू भी हो होशियार, है फौलादी हर मेरा वार
अब तक चालाकी के दम पे, यूँ जीते हो तुम इस रण में
अब सामने है एक सिंह खड़ा, भागोगे तुम कुछ ही क्षण में
बेवजह नहीं गुर्राता हूँ, दुश्मन को मौत दिखता हूँ
भारत माता का बेटा हूँ, बेटे का फ़र्ज़ निभाता हूँ
जन्मभूमि है कर्मभूमि है, रंगभूमि भारत मेरी
देखे जो कोई बुरी नजर से यूँ, होगी ना कोई चाहत पूरी

हर कोई फ़र्ज़ को पहचाने, दुश्मन को भगाने की ठाने
यही सपना मैंने देखा है, बाकी सब सपने अनजाने...

फांसी का फंदा पाऊँगा,
हँसकर मैं गले लगाऊँगा 
मरना तो है सबको एक दिन,
गीता का सार निभाऊँगा
ये देह छोड़के मिट्टी में,
आकाश को ही मैं जाऊँगा
हर बार जन्म जब भी लूँगा,
इस भारत देश में आऊँगा
इस भारत देश में आऊँगा...



जय  हिंद... 

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