Friday 30 September 2011

आज दिन आ ही गया अलविदा कहने का...

आज दिन आ ही गया अलविदा कहने का,
कल तक अहसास भी ना था जिसका.
वक़्त थोडा थक ही ले,
तो मैं सबको मिल ही लूँ.
इस वक़्त से ही तो सबकी जंग,
क्यूँ फिर बैठे मेरे संग.
फिर कभी फुरसत मिले तो,
दिखलायेगा फिर वो रंग.
हर एक पल में सदियाँ जीलो,
शायद यही जीने का ढंग.
…………………




आज तो आसमां भी नम है, चाँद भी थोडा-थोडा कम है.
ये चाँद का जो ढंग है, वही  जिंदगी का रंग है.
आज थोडा-थोडा कम है, तो कल फिर पूरा संग है.
…………………
बंद आँखों में देखे सपने, सब बेगाने फिर भी अपने.
खुली आँख तो हुआ यकीन, ये सपने सच होते हैं कहीं.
यूँ पहले भी हुआ था सबसे दूर, शायद यही दुनिया का दस्तूर.
फिर मिलूं किसी से युहीं यहाँ, था कहाँ मुझे मंजूर.
पर युहीं तन्हा चलकर जाता कितना दूर.
फिर से कहीं जब नजर में आई, बीते दिनों की वो कुछ छाया.
ना चाहकर भी उस पल को, मैं खुद को रोक ना पाया.
बैठा फिर कुछ देर वहां पर, जाने क्यूँ  फिर से ख्याल ये आया.
अभी सफ़र तो काफी बाकी, कहाँ अभी मैं मंजिल पाया.
ये तो हैं कुछ देर के साथी, सबकी अलग है मंजिल.
मुझे तो है  जिस मंजिल जाना, उसकी राहें बड़ी हैं मुश्किल.
……………………
फिर से सबको है अलविदा,
हो रहा हूँ मैं सबसे जुदा.
मंजिल है मेरी दूर अभी,
फुरसत से फिर मिलेंगे कभी.
वो कभी कहाँ कब आएगा,
ये तो वक़्त मुझे बतलायेगा.
बस वक़्त ही जानने पायेगा.
…………….........
अब पल आ ही गया अलविदा कहने का...

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